गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
दोनों नागकुमार कहते हैं- पिताजी! तदनन्तर बहुत समय व्यतीत होनेपर राजाने पुनः अपने पुत्रसे कहा-'बेटा! तुम प्रतिदिन प्रात:काल इस अश्वपर सवार हो ब्राह्मणोंकी रक्षाके लिये पृथ्वीपर विचरते रहो। सैकड़ों दुराचारी दानव इस पृथ्वीपर मौजूद हैं। उनसे मुनियोंको बाधा न पहुँचे, ऐसी चेष्टा करो।' पिताकी इस आज्ञाके अनुसार राजकुमार उसी दिनसे ऐसा ही करने लगे। वे पूर्वाह्नमें ही सारी पृथ्वीकी परिक्रमा करके पिताके चरणोंमें मस्तक झुकाते थे। एक दिनकी बात है, वे घूमते हुए यमुना-तटपर गये। वहाँ पातालकेतुका छोटा भाई तालकेतु आश्रम बनाकर रहता था। राजकुमारने उसे देखा, वह मायावी दानव मुनिका रूप धारण किये हुए था। उसने पहलेके वैरका स्मरण करके उनसे कहा-'राजकुमार! मैं तुमसे एक बात कहता हूँ; यदि तुम्हारी इच्छा हो तो उसे करो। तुम सत्यप्रतिज्ञ हो, अतः तुम्हें मेरी प्रार्थना भङ्ग नहीं करनी चाहिये। मैं धर्मके लिये यज्ञ करूँगा और उसमें अनेक इष्टियाँ करनी होगी। इन सबके लिये इष्टका चयन करना भी आवश्यक है; किन्तु मेरे पास दक्षिणा नहीं है। अत: वीर! तुम सुवर्णके लिये मुझे अपने गलेका यह आभूषण दे दो और मेरे इस आश्रमकी रक्षा करो। तबतक मैं जलके भीतर प्रवेश करके प्रजाकी पुष्टिके लिये वरुण देवता-सम्बन्धी वैदिक मन्त्रोंसे वरुण देवताकी स्तुति करता हूँ। स्तुतिके पश्चात् जल्दी ही लौटूंगा।' उसके यों कहनेपर राजकुमारने उसे प्रणाम किया और अपने कण्ठका आभूषण उतारकर दे दिया। फिर इस प्रकार कहा-'आप निश्चिन्त होकर जाइये; जबतक लौट नहीं आयेंगे, तबतक यहीं मैं आपके आश्रमके समीप ठहरूँगा।'
राजकुमारके इस प्रकार कहनेपर तालकेतु नदीके जलमें डुबकी लगाकर अदृश्य हो गया और वे उसके मायानिर्मित आश्रमकी रक्षा करने लगे। जलके भीतरसे वह राजकुमारके नगरमें चला गया और मदालसा तथा अन्य लोगोंके समक्ष पहुँचकर इस प्रकार बोला।
तालकेतुने कहा- वीर कुवलयाश्व मेरे आश्रमके समीप गये थे और तपस्वियोंकी रक्षा करते हुए किसी दुष्ट दैत्यसे युद्ध कर रहे थे। उन्होंने अपनी शक्तिभर युद्ध किया और बहुत-से ब्राह्मणद्वेषी दैत्योंको मौतके घाट उतारा; फिर उस पापी दैत्यने मायाका सहारा लेकर शूलसे उनकी छाती छेद डाली। मरते समय उन्होंने अपने गलेका यह आभूषण मुझे दिया; फिर तपस्वियोंने मिलकर उनका अग्निसंस्कार कर दिया। उनका अश्व भयभीत हो नेत्रोंसे आँसू बहाता हुआ हिनहिनाता रहा। उसी अवस्थामें वह दुरात्मा दानव उसे अपने साथ पकड़ ले गया। मुझ पापाचारी निष्ठुरने यह सब कुछ अपनी आँखों देखा है। इसके बाद जो कुछ कर्तव्य हो, वह आपलोग करें। अपने हृदयको आश्वासन देनेके लिये यह गलेका हार ग्रहण कीजिये।
यों कहकर तालकेतुने वह हार पृथ्वीपर छोड़ दिया और जैसे आया था, वैसे ही चला गया। यह दुःखपूर्ण समाचार सुनकर वहाँके लोग शोकसे व्याकुल हो मूर्च्छित हो गये; फिर थोड़ी देरमें होशमें आनेपर रनिवासकी सभी स्त्रियाँ, राजा तथा महारानी भी अत्यन्त दुखी होकर विलाप करने लगी। मदालसाने उनके गलेके आभूषणको देखा और पतिको मारा गया सुनकर तुरंत ही अपने प्यारे प्राणोंको त्याग दिया।*
मदालसा तु तद् दृष्ट्वा तदीयं कण्ठभूषणम्।
तत्याजाशु प्रियान् प्राणान् श्रुत्वा च निहतं पतिम् ॥
(अ० २२। ८५)
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
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- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य